Thursday, March 5, 2015

छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्री
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गीत का संबंध कोमल भावों से होता है। और बात जब कोमलता की हो, तो  वो स्त्री के बगैर पूरी हो नहीँ सकती।
शायद इसी लिये अधिकाँश गीतों की विषय वस्तु स्त्रियाँ ही होती हैं। और लोकगीतों की तो प्राण है नारी। समाज के तरह तरह के बंधनों से उबर कर लोकगीतों मेँ स्त्रियाँ अधिक मुखर हो उठती हैं। प्रसंग चाहे कोई भी हो वे अपना मन खोल कर रख देती हैं।

 छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्रियों की भगीदारी कुछ अधिक ही मिलती है। इसीलिये इन गीतों में स्त्री मन की
अनेक परतें खुलती चली जाती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में प्रेम भावनाओं और मन की पीड़ा  से जुड़े गीतों के
साथ साथ हिंदी साहित्य की नवीन धारा स्त्री विमर्श को भी देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ी लोकगीत ददरिया और सुआ गीत स्त्री विमर्श के गीत हैं। 

छत्तीसगढ़ की होली 

छत्तीसगढ़ में होली के कई रंग नज़र आते हैं कुछ पारम्परिक तो कुछ परम्परा से अलग हटकर।
आमतौर पर  होली में होलिका दहन के दूसरे दिन रंगोत्स्व का  रिवाज़ हैऔर छत्तीसगढ़ में भी इसी
 रूप में होली मनायी जाती है। लेकिन यहाँ  के कुछ गाँवों में होलिका दहन नहीं होता और अबीर गुलाल
 से ही होली खेली जाती है।यहाँ  रंग भी प्रकृति से लिये जाते हैं।यहाँ टेसू वनों की भरमार है। शिवनाथ और
महानदी के किनारे टेसू की बहार देखते ही बनती है और जंगल वे दहक ही उठते हैं। इसीलये यहाँ   टेसू और केशव के फूलों से रंग बना कर  होली खेली जाती है। छत्तीसगढ़ में किसबिन(वेश्या ) नाच की परंपरा भी रही है। मगर समय के साथ ये अब खत्म होती जा रही है।