Thursday, March 5, 2015

छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्री
***********************
गीत का संबंध कोमल भावों से होता है। और बात जब कोमलता की हो, तो  वो स्त्री के बगैर पूरी हो नहीँ सकती।
शायद इसी लिये अधिकाँश गीतों की विषय वस्तु स्त्रियाँ ही होती हैं। और लोकगीतों की तो प्राण है नारी। समाज के तरह तरह के बंधनों से उबर कर लोकगीतों मेँ स्त्रियाँ अधिक मुखर हो उठती हैं। प्रसंग चाहे कोई भी हो वे अपना मन खोल कर रख देती हैं।

 छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में स्त्रियों की भगीदारी कुछ अधिक ही मिलती है। इसीलिये इन गीतों में स्त्री मन की
अनेक परतें खुलती चली जाती हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में प्रेम भावनाओं और मन की पीड़ा  से जुड़े गीतों के
साथ साथ हिंदी साहित्य की नवीन धारा स्त्री विमर्श को भी देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ी लोकगीत ददरिया और सुआ गीत स्त्री विमर्श के गीत हैं। 

छत्तीसगढ़ की होली 

छत्तीसगढ़ में होली के कई रंग नज़र आते हैं कुछ पारम्परिक तो कुछ परम्परा से अलग हटकर।
आमतौर पर  होली में होलिका दहन के दूसरे दिन रंगोत्स्व का  रिवाज़ हैऔर छत्तीसगढ़ में भी इसी
 रूप में होली मनायी जाती है। लेकिन यहाँ  के कुछ गाँवों में होलिका दहन नहीं होता और अबीर गुलाल
 से ही होली खेली जाती है।यहाँ  रंग भी प्रकृति से लिये जाते हैं।यहाँ टेसू वनों की भरमार है। शिवनाथ और
महानदी के किनारे टेसू की बहार देखते ही बनती है और जंगल वे दहक ही उठते हैं। इसीलये यहाँ   टेसू और केशव के फूलों से रंग बना कर  होली खेली जाती है। छत्तीसगढ़ में किसबिन(वेश्या ) नाच की परंपरा भी रही है। मगर समय के साथ ये अब खत्म होती जा रही है। 

Wednesday, December 18, 2013

आज भारतीय  संत परंपरा के वाहक  गुरु घासीदास  जयंती है। गुरु घासीदास कबीर परंपरा के कवि थे।  छत्तीसगढ़ में कबीर मत को स्थापित करके सतनाम पंथ चलाने वाले गुरु घासीदास का जन्म रायपुर के
पास गिरौद पुरी गाँव में हुआ था। 18 दिसंबर को सारा छत्तीसगढ़ उनका जन्म दिन मनाता है मगर यहाँ का
सतनामी समाज इस  उत्सव में अग्रगणी  रहता है।  इस अवसर पर इनके  द्वारा नृत्य किया जाता है।  इसे पंथी नृत्य  कहा जाता है। इसमें गुरु घासीदास की  महीमा और उनके जीवन चरित्र का वर्णन होता है।  इस नृत्य में नर्त्तक सफेद  केवल धोती पहनते हैं। सबसे   पहले गोल घेरा बना कर  , हाथ में अगरबत्ती लेकर वे गुरु घासी दास की वंदना करके नृत्य प्रारंभ करते हैं। सारी पूजा नृत्य के दरमियान ही संपन्न की जाती हैपवित्रता के साथ साथ करतब भी  शामिल शामिल होता है    धीरे धीरे नृत्य तीव्र होता जाता है। पवित्रता के साथ साथ करतब भी  शामिल  होते  है। खास कर नर्त्तकों का पिरामिड की  शक्ल में ढलना।  पंथी नृत्य छतीसगढ़ का प्रसिद्ध नृत्य है। 
 

Wednesday, July 6, 2011

पंडवानी

पंडवानी ,छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध कथा गीत . इसे नाटय गीत कहना ज्यादा उपयुक्त होगा . यह नाटक और गीत का मिलाजुला रूप है .इसमें अभिनय और गायन दोनों शामिल हैं .पंडवानी को तीजन बाई और ऋतू वर्मा ने देश विदेश में प्रसिद्धि दिलाई .मगर छत्तीसगढ़ में और भी ऐसी कलाकार हैं जो इसमें नये आयाम जोड़ती हैं ,इन नामों  में एक नाम है शांति बाई चेलक . ये पंडवानी के प्रसिद्ध प्रसंगों के साथ साथ उन प्रसंगों को उठाती हैं जो अब तक  अनछुए हैं ,जैसे पंडवानी की स्त्री पात्र . स्त्री पत्रों में भी सर्वथा उपेक्छित दुर्योधन की पत्नीं भानुमती ,भीष्म पितामह की माता सत्यवती .इन पात्रों की व्यथा को वर्तमान स्त्रीविमर्श से जोड़ना इनकी विशेषता  है .और यही विशेषता इन्हें ओरों से अलगाती है और इनका गायन ओरों से अलग हो उठता है .